Tuesday, May 31, 2011

इंतज़ार

इंतज़ार  में  जिनके  हम  बैठे  थे ,
उसकी  आहात  भी  सुनाई न  दी .
 

खयालो  में  वो  जो  एक  चेहरा  था ,
उसकी  झलक  भी  दिखाई  न  दी .
 

थी  जिसकी में आशीक वो  तो  बेवफा  निकला ,
बिछड़े  हम  ऐसे  की ,
गिरते  हुए  आँसों  की  आवाज़  भी  सुनाई न दी  ......

66 comments:

vijai Rajbali Mathur said...

एक अच्छी अभिव्यक्ति है.

Bharat Bhushan said...

ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਬਿਟਿਯਾ, ਮੈੰ ਸਮਝਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਤੁਸੀੰ ਪੰਜਾਬੀ ਜ਼ਰੂਰ ਪਡ ਲੈੰਦੇ ਹੋਵੋਗੇ. ਜੋ ਤੁਸੀਂ ਹਿੰਦੀ ਵਿੱਚ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਉਹੀ ਪੰਜਾਬੀ ਚ ਲਿਖੋਗੇ ਤਾੰ ਉਸਦੀ ਰੰਗਤ ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਹੋਵੇਗੀ.
ਤੁਸੀੰ ਬਹੁਤ ਚੰਗ ਲਿਖਿਆ ਹੈ. ਵਧਾਇਯਾੰ ਅਤੇ ਸ਼ੁਭਕਾਮਨਾਵਾੰ. ਆਪਜੀ ਦੇ ਇਸ ਬਲਾਗ ਦਾ ਮੈੰ ਫਾਲੋਅਰ ਬਣ ਰਿਹਾ ਹਾੰ.
ਮੇਰਿਯਾੰ ਸਪੈਲਿੰਗ ਮਿਸਟੇਕਾੰ ਮਾਫ.

Bharat Bhushan said...

आप हिंदी में लिखना नहीं छोड़ना. पहले जो कहा है वह आत्म अभिव्यक्ति को मातृभाषा में कहने की दृष्टि से कहा है.
आपको धन्यवाद.

virendra sharma said...

बिछड़े हम ऐसे कि गिरते हुए साँसों की आवाज़ भी सुनाई न दी ...सुन्दर अभिव्यक्ति ...
इंतज़ार पे कुछ शैर आपके लिए -
अंदाज़ हु -बा -हु तेरी आवाज़े पा का था
बाहर निकलके देखा तो झोंका हवा का था ।
यहाँ "पा "का अर्थ पैर है और आवाज़े पा मानी है पैर की आवाज़ ,चलने की आहट पदचाप ।
प्रतीक्षा में युग बीत गए सन्देश न कोई मिल पाया ,
सच बतलाऊं तुम्हें प्राण इस जीने से मरना भाया ।
एक शैर और भी इंतज़ार पर आपकी नजर -
न कोई वक्त ,न कोई उम्मीद ,न कोई वायदा ,
खड़े थे रहगुज़र पे करना था तेरा इंतज़ार .यहाँ रहगुज़र रास्ता है .

sushmaa kumarri said...

bhut hi bhaavpur panktiya...

RAJPUROHITMANURAJ said...

Bahuthi sunder rachana hai

रेखा said...

अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोने का बेहतरीन प्रयास.

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति| धन्यवाद|

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सुन्दर प्रेम विरह रचना ।
थोड़ा कोशिश कीजिये , हिंदी में सुधार लाने की ।

virendra sharma said...

गिरते हुए आंसू की आवाज़ भी सुनाई न दी .......
सुन्दर भावाभिव्यक्ति .

Rakesh Kumar said...

मनप्रीत जी सुन्दर भावों का संयोजन किया है आपने.
यदि 'आहात' की जगह 'आहट' हो और'आसों' की जगह 'आसूं' हो तो कैसा रहें ?
बिछुडने से 'आहत' हो जाता है मन.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

Urmi said...

खयालो में वो जो एक चेहरा था ,
उसकी झलक भी दिखाई न दी .
वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!

BrijmohanShrivastava said...

इंतजार शीर्षक से आपकी रचना पढी। इसके अलावा 'जी चाहता है' और 'क्यों दूर होकर भी ' कविताऐं पढी । वर्तमान रचना का तो शीर्षक ही इन्तजार है क्यों दूर होकर में " इन्तजार रहता है" तीनो रचनायें श्रेष्ठ । अब एक निवेदन
उठे-
उठकर चले -
चल कर रुके -
रुक कर कहा होगा-
हमीं क्यों जायें बहुत है उनकी हालत देखने वाले

नीलांश said...

इंतज़ार में जिनके हम बैठे थे ,
उसकी आहट भी सुनाई न दी .

खयालो में वो जो एक चेहरा था ,
उसकी झलक भी दिखाई न दी .

थी जिसकी में आशिक वो तो बेवफा निकला ,
बिछड़े हम ऐसे की ,
गिरते हुए आसुओं की आवाज़ भी सुनाई न दी ......

...rachna sunder hai..

good wishes...
good day

G.N.SHAW said...

इंतज़ार की घडी ही ऐसी होती है !बहुत सुन्दर

Kunwar Kusumesh said...

आपने लिखा सुन्दर है.वैसे इंतज़ार का भी अलग मज़ा है.

Asha Joglekar said...

Bahut khoobsurat sher kahe hain. wartani me thoda sudhar chahiye to sone parr suhaga hoga.

Coral said...

खयालो में वो जो एक चेहरा था ,
उसकी झलक भी दिखाई न दी .

बहुत सुन्दर

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना. पहली बार आपके ब्लाग पर आया हूं। अच्छा लगा

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत सुन्दर प्रयास...

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत सुंदर रचना.....

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सचमुच बहुत जालिम होताहै इंतजार।

---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्‍लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।

Richa P Madhwani said...

http://shayaridays.blogspot.com

RameshGhildiyal"Dhad" said...

Udaasiyon ko apne aawaz di hai...
khamoshiyon ko parwaaz di hai..
bahut muskate mile the tum to kal!
fir kyun khabar 'Tabiyat naasaz'di hai?

Unknown said...

Bahut khoobbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbb

Rachana said...

खयालो में वो जो एक चेहरा था ,
उसकी झलक भी दिखाई न दी
sunder abhivyakti
rachana

Vivek Jain said...

बहुत ही बढ़िया,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

कोमल भावों की मनमोहक अभिव्यक्ति ...

कुछ शब्दों को सुधारने की जरूरत है ...शायद टाइपिंग में गड़बड़ हो गयी हो

रविकर said...

ਵਧਾਇਯਾੰ ਅਤੇ ਸ਼ੁਭਕਾਮਨਾਵਾੰ
बहुत सुन्दर

रविकर said...

ਵਧਾਇਯਾੰ ਅਤੇ ਸ਼ੁਭਕਾਮਨਾਵਾੰ
हिंदी में लिखना नहीं छोड़ना

संतोष त्रिवेदी said...

प्रयास अच्छा है,सुधार की भरपूर गुंजाइश !

upendra shukla said...

पहली पर् आया आपके इस ब्लॉग पर् यहाँ कुछ अच्छा !अच्छी अभिव्यक्ति है !पर् आप लोग मेरे ब्लॉग पर् भी आये !मेरा पर् आने
के लिए यहाँ क्लिक करे -"samrat bundelkhand"

Vivek Jain said...

वाह!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

निर्मला कपिला said...

बहुत ाच्छे भाव हैं। शुभकामनायें।

Akshitaa (Pakhi) said...

आप तो बहुत सुन्दर लिखती हैं..बधाई.
___________________

'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!

तेजवानी गिरधर said...

अति सुंदर, धन्यवाद, शुभमानाएं

Unknown said...

बहुत खूब !
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - स्त्री अज्ञानी ?

अभिषेक मिश्र said...

सुन्दर अभिव्यक्ति, थोडा सा वर्तनी पर भी ध्यान देने का आग्रह करूँगा.

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) said...

इंतज़ार में जिनके हम बैठे थे ,
उसकी आहट भी सुनाई न दी .

ख्यालों में वो जो एक चेहरा था ,
उसकी झलक भी दिखाई न दी .

थी जिसकी मैं आशिक
वो तो बेवफा निकला ,
बिछड़े हम ऐसे कि ,
गिरते हुए आँसों की आवाज़ भी सुनाई न दी ......

नाज़ुक एहसास ,सुन्दर अभिव्यक्ति.

Sunny Dhanoe said...

Wah Wah!
Beautifully Written !

श्यामल सुमन said...

अछि कोशिश मनप्रीत जी

थोडा ऐसे सुधार कर लें --- आहात - आहट, में आशीक- मैं आशिक, की - कि, आँसों - आंसुओं -

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Udan Tashtari said...

बढ़िया अभिव्यक्ति...

shailendra gupta said...

wah wah

जीवन का उद्देश said...

अच्छा लिखती हैं। सुन्दर अभिव्यक्ति, कोशिश ही पत्थर से हीरा बनाती है। हमारी ओर से बधाई स्वीकार करें

Anonymous said...

शुभकामनाएं तथा शुभ आशीष

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

सुन्दर रचना.भावपूर्ण.

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.

दिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?

मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.

मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो

Hema Nimbekar said...

bahut sunder.............

जयकृष्ण राय तुषार said...

मनप्रीत कौर जी बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |

संतोष त्रिवेदी said...

एक तरफ आप कह रही हैं कि उसकी आहट तक नहीं सुनाई दी है,दूसरी ओर उससे बिछड़ने कि बात भी कर रही हैं.इस बात का ख्याल रखें कि दो तरह के भाव एक साथ न जाएँ और थोडा टाइपिंग में भी सुधार करें !

शुभकामनाओं के साथ !

रविकर said...

ਕਿਤ੍ਥੇ ਗਏ |

Girish Billore Mukul said...

anupam

सच बोले तो ...... said...

इंतज़ार में जिनके हम बैठे थे ,
उसकी आहात भी सुनाई न दी .

खयालो में वो जो एक चेहरा था ,
उसकी झलक भी दिखाई न दी .

थी जिसकी में आशीक वो तो बेवफा निकला ,
बिछड़े हम ऐसे की ,
गिरते हुए आँसों की आवाज़ भी सुनाई न दी .


वाह! क्या बढ़िया लिखा है ! इतना सुन्दर और सार्थक लिखने के लिए आभार !
Manpreet Kaur जी मेरे ब्लॉग पर आने के लिए भी आपका शुक्रिया!

Shruti said...

Very nicely written. Loved it.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

सुन्दर अभिव्यक्ति !
आभार !

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

मनप्रीत जी अभिवादन -प्रेम रस छलक गया सुन्दर ..
लेकिन आइये थोडा इन पंक्तियों को ऐसे सुधार दो कृपया

इंतज़ार में जिनके हम बैठे थे ,

उसकी आहट भी सुनाई न दी !

खयालो में वो जो एक चेहरा था ,

उसकी झलक भी दिखाई न दी !

थी जिसकी मै आशिक वो तो बेवफा निकला ,

बिछड़े हम ऐसे कि ,

गिरते हुए आंसू की आवाज़ भी सुनाई न दी ......

शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया में भी आयें और बच्चों को थोडा प्यार दें

AJMANI61181 said...

rachna acchi hai par hindi me aap sudhaar ki gunjaaish hai
jaise aahat bhi sunaai naa di

उसकी आहात भी सुनाई न दी

Ankur Jain said...

sundar prastuti

Anonymous said...

मार्मिक प्रस्तुति

सागर said...

very nice....

S.N SHUKLA said...

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

somali said...

bhavpurna abhivyakti

Unknown said...

BAHUT BADHIYA PRASTUTI... I M NOW FOLLOWING U..

vijai Rajbali Mathur said...

आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।

avanti singh said...

bahut hi umda likha aap ne bdhai....

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